एक डब्बे में रौशनी भर कर लाई थी
की अपने चिराग से सी देगी
तो घर में उसके उजाला हो जायेगा
अब लौ पकड़ कर बैठी रहती है पगली
की बखिया उधड़ गयी
तोह उसकी रौशनी यतीम हो जाएगी।
तेरे पैमाने से नापा तोह बड़ा छोटा पाया उसको
दूजे फ़क़ीर ने उसमे अपना ख़ुदा देख लिया
तूने पुछा की उसकी मिटटी में ऐसा क्या है
जो तेरे सोने में नहीं ?
फ़क़ीर हंस कर बोला
जाके उन पेड़ों से पूछ
जिनकी छाया में बैठती है वह।
टूटे तारे बटोरती है अपने आँचल में
और संभाल कर रख देती है अपनी किताबों के बीच
उनसे कहती है की कुछ लव्ज़ों के दामन में
हर टूटी चीज़ को सुकून मिल जाता है।
उसकी उम्मीद के अफाक पे कभी डूबता नहीं है सूरज
हर शाम को उसके दर पे किनारा मिल जाता है।
कहानियां ढूंढ़ती है अंजान रास्तों पे
खो जाने का डर नहीं मालूम उसको
इतनी रौशनी है उसकी मुस्कराहट में
अंधे कोहरों में भी उसके निशान ढूंढ लूँ।